श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 8: भगवान् नृसिंह द्वारा असुरराज का वध  »  श्लोक 56
 
 
श्लोक  7.8.56 
 
 
श्रीविष्णुपार्षदा ऊचु:
अद्यैतद्धरिनररूपमद्भ‍ुतं ते
द‍ृष्टं न: शरणद सर्वलोकशर्म ।
सोऽयं ते विधिकर ईश विप्रशप्त-
स्तस्येदं निधनमनुग्रहाय विद्म: ॥ ५६ ॥
 
अनुवाद
 
  विष्णु जी के वैकुंठ धाम के पार्षदों ने यह प्रार्थना की: हे स्वामी, हे शरणागत रक्षा करने वाले, आज हमने नृसिंहदेव के रूप में आपके अद्भुत रूप का दर्शन किया है, जो पूरे संसार के लिए सौभाग्य लाने वाला है। हे भगवान्, हम समझते हैं कि हिरण्यकशिपु वही जय था जो आपकी सेवा में लगा हुआ था, लेकिन उसे ब्राह्मणों ने शाप दे दिया था जिसके कारण उसे राक्षस का शरीर प्राप्त हुआ था। हम समझते हैं कि उसका मारा जाना आपकी उस पर विशेष कृपा है।
 
 
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध सात के अंतर्गत आठवाँ अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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