श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 8: भगवान् नृसिंह द्वारा असुरराज का वध  »  श्लोक 51
 
 
श्लोक  7.8.51 
 
 
श्रीचारणा ऊचु:
हरे तवाङ्‌घ्रिपङ्कजं भवापवर्गमाश्रिता: ।
यदेष साधुहृच्छयस्त्वयासुर: समापित: ॥ ५१ ॥
 
अनुवाद
 
  चारणलोक के निवासियों ने कहा: हे प्रभु, आपने उस असुर हिरण्यकशिपु का नाश किया, जो सभी ईमानदार लोगों के दिलों में एक दाग था। अब हमें शांति मिल गई और हम आपके चरणकमलों का आश्रय लेते हैं, जो भौतिकता के प्रदूषण से मुक्ति दिलाते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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