श्रीगन्धर्वा ऊचु:
वयं विभो ते नटनाट्यगायका
येनात्मसाद्वीर्यबलौजसा कृता: ।
स एष नीतो भवता दशामिमां
किमुत्पथस्थ: कुशलाय कल्पते ॥ ५० ॥
अनुवाद
गन्धर्वलोक के निवासियों ने प्रार्थना की: हे प्रभु, हम गायन व नृत्य द्वारा हमेशा ही आपकी सेवा में तल्लीन रहते थे, परन्तु हिरण्यकशिपु ने अपनी शारीरिक शक्ति और पुरुषार्थ से हमें अपने वश में कर लिया। आपने उसे यह निकृष्ट अवस्था दिलाई। बताइये, हिरण्यकशिपु जैसे पथभ्रष्ट जीवों के कार्यकलापों से हमें क्या लाभ हो सकता है?