श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 8: भगवान् नृसिंह द्वारा असुरराज का वध  »  श्लोक 47
 
 
श्लोक  7.8.47 
 
 
श्रीनागा ऊचु:
येन पापेन रत्नानि स्त्रीरत्नानि हृतानि न: ।
तद्वक्ष:पाटनेनासां दत्तानन्द नमोऽस्तु ते ॥ ४७ ॥
 
अनुवाद
 
  नागलोक के निवासियों ने कहा: अत्यंत पापी हिरण्यकश्यपु ने हमारे फणों के आभूषण और हमारी सुन्दर पत्नियों को छीन लिया था। अब जबसे आपने उसे अपने नाखूनों से मार डाला है, आप हमारी पत्नियों की परम प्रसन्नता के कारण हैं। इस प्रकार हम सब एक साथ आपको आदरपूर्वक नमन करते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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