श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 8: भगवान् नृसिंह द्वारा असुरराज का वध  »  श्लोक 35
 
 
श्लोक  7.8.35 
 
 
निशाम्य लोकत्रयमस्तकज्वरं
तमादिदैत्यं हरिणा हतं मृधे ।
प्रहर्षवेगोत्कलितानना मुहु:
प्रसूनवर्षैर्ववृषु: सुरस्त्रिय: ॥ ३५ ॥
 
अनुवाद
 
  हिरण्यकश्यपु तीनों लोकों में एक ज्वर की भांति व्याप्त था। अतः जब स्वर्गीय ग्रहों में देवताओं की पत्नियों ने देखा कि महान दानव को स्वयं परम व्यक्तित्व भगवान ने मार डाला है, तो उनके चेहरे खुशी से खिल उठे। देवताओं की पत्नियों ने स्वर्ग से भगवान नरसिंहदेव पर बार-बार फूलों की वर्षा की जैसे वर्षा हो रही हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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