श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 8: भगवान् नृसिंह द्वारा असुरराज का वध  »  श्लोक 32
 
 
श्लोक  7.8.32 
 
 
सटावधूता जलदा: परापतन्
ग्रहाश्च तद् द‍ृष्टिविमुष्टरोचिष: ।
अम्भोधय: श्वासहता विचुक्षुभु-
र्निर्ह्रादभीता दिगिभा विचुक्रुशु: ॥ ३२ ॥
 
अनुवाद
 
  नृसिंह देव के सिर के बाल हिलने से बादलों की दिशा बदल गई और वे इधर-उधर बिखर गए। उनकी आँखों से जलती हुई आग निकल रही थी, जिससे आकाश में चंद्रमा और सितारों की चमक फीकी पड़ गई। उनकी सांसें इतनी तेज थीं कि समुद्र अशांत हो उठा। उनकी गर्जना सुनकर दुनिया के सारे हाथी डर के मारे चिल्लाने लगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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