श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 8: भगवान् नृसिंह द्वारा असुरराज का वध  »  श्लोक 29
 
 
श्लोक  7.8.29 
 
 
विष्वक्स्फुरन्तं ग्रहणातुरं हरि-
र्व्यालो यथाखुं कुलिशाक्षतत्वचम् ।
द्वार्यूरुमापत्य ददार लीलया
नखैर्यथाहिं गरुडो महाविषम् ॥ २९ ॥
 
अनुवाद
 
  जिस प्रकार कोई सांप किसी चूहे को पकड़ लेता है, या गरुड़ किसी ज़हरीले सांप को पकड़ लेता है, उसी प्रकार भगवान् नृसिंहदेव ने हिरण्यकशिपु को पकड़ लिया। हिरण्यकशिपु की त्वचा में इंद्र का वज्र भी नहीं घुस सकता था। जब हिरण्यकशिपु को पकड़ा गया, तो वह बहुत पीड़ित हुआ और अपने अंग इधर-उधर हिलाने लगा। तब भगवान् नृसिंहदेव ने असुर को अपनी गोद में रख लिया और अपनी जांघों का सहारा देकर, उस सभा भवन की देहली पर अपने हाथ के नाखूनों से सरलतापूर्वक उस असुर को छिन्न-भिन्न कर डाला।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.