श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 8: भगवान् नृसिंह द्वारा असुरराज का वध  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  7.8.27 
 
 
तं मन्यमानो निजवीर्यशङ्कितं
यद्धस्तमुक्तो नृहरिं महासुर: ।
पुनस्तमासज्जत खड्‌गचर्मणी
प्रगृह्य वेगेन गतश्रमो मृधे ॥ २७ ॥
 
अनुवाद
 
  जब हिरण्यकशिपु नृसिंहदेव के हाथों से छूटा तो उसे मिथ्या विचार हुआ कि भगवान उसके शौर्य से डरा हुआ है। इसलिए, युद्ध से थोड़ा विश्राम करके उसने अपनी ढाल और तलवार निकाली और फिर से पूरी ताकत से भगवान पर आक्रमण कर दिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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