प्रायेण मेऽयं हरिणोरुमायिना
वध: स्मृतोऽनेन समुद्यतेन किम् ।
एवं ब्रुवंस्त्वभ्यपतद् गदायुधो
नदन् नृसिंहं प्रति दैत्यकुञ्जर: ॥ २३ ॥
अनुवाद
अपने मन में हिरण्यकशिपु ने कहा, "अपार योगशक्ति वाले भगवान विष्णु ने मेरा वध करने के लिए यह युक्ति बनाई है, किंतु इस प्रकार के प्रयास को करने से क्या लाभ है? ऐसा कौन है जो मुझसे युद्ध कर सकता है?" यह सोचकर हाथी के समान हिरण्यकशिपु ने अपनी गदा उठाकर भगवान् पर आक्रमण कर दिया।