श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 8: भगवान् नृसिंह द्वारा असुरराज का वध  »  श्लोक 19-22
 
 
श्लोक  7.8.19-22 
 
 
मीमांसमानस्य समुत्थितोऽग्रतो ।
नृसिंहरूपस्तदलं भयानकम् ॥ १९ ॥
प्रतप्तचामीकरचण्डलोचनं
स्फुरत्सटाकेशरजृम्भिताननम् ।
करालदंष्ट्रं करवालचञ्चल
क्षुरान्तजिह्वं भ्रुकुटीमुखोल्बणम् ॥ २० ॥
स्तब्धोर्ध्वकर्णं गिरिकन्दराद्भ‍ुत-
व्यात्तास्यनासं हनुभेदभीषणम् ।
दिविस्पृशत्कायमदीर्घपीवर-
ग्रीवोरुवक्ष:स्थलमल्पमध्यमम् ॥ २१ ॥
चन्द्रांशुगौरैश्छुरितं तनूरुहै-
र्विष्वग्भुजानीकशतं नखायुधम् ।
दुरासदं सर्वनिजेतरायुध-
प्रवेकविद्रावितदैत्यदानवम् ॥ २२ ॥
 
अनुवाद
 
  हिरण्यकशिपु ने अपने सामने खड़े नृसिंह भगवान के रूप को ध्यान से देखा। भगवान के शरीर पर गुस्से से पिघला सोना सा रंग था। उनकी आँखें क्रोध से पिघले सोने की तरह भयावह लग रही थीं। उनकी चमकीली अयाल उनके भयानक चेहरे को और भी भयावह बना रही थी। उनके नुकीले दाँत मृत्यु के समान थे। उनकी तीखी जीभ जैसे लड़ाई में तलवार की तरह घूम रही थी। उनके कान सीधे और गतिहीन थे, और उनके नथुने और खुला मुँह पर्वत की गुफाओं के समान दिख रहे थे। उनके जबड़े भयावह रूप से फैले हुए थे, और उनका सारा शरीर आकाश को छू रहा था। उनकी गर्दन बहुत छोटी और मोटी थी, छाती चौड़ी और कमर पतली थी। उनके शरीर के बाल चंद्रमा की किरणों की तरह सफेद थे। उनकी भुजाएँ सैनिकों के दल की तरह फैली हुई थीं। वे अपने शंख, चक्र, गदा, कमल और अन्य स्वाभाविक हथियारों से राक्षसों, दुष्टों और नास्तिकों का वध कर रहे थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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