श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 8: भगवान् नृसिंह द्वारा असुरराज का वध  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  7.8.18 
 
 
स सत्त्वमेनं परितो विपश्यन्
स्तम्भस्य मध्यादनुनिर्जिहानम् ।
नायं मृगो नापि नरो विचित्र-
महो किमेतन्नृमृगेन्द्ररूपम् ॥ १८ ॥
 
अनुवाद
 
  जब हिरण्यकशिपु उस ध्वनि के स्रोत को खोजने के लिए चारों ओर देख रहा था, उस खंभा से भगवान का एक अद्भुत रूप निकला जिसे न तो मनुष्य कहा जा सकता है और न ही शेर। हिरण्यकशिपु आश्चर्यचकित हुआ, "यह कौन सा प्राणी है, जो आधा पुरुष और आधा शेर है?"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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