स विक्रमन् पुत्रवधेप्सुरोजसा
निशम्य निर्ह्रादमपूर्वमद्भुतम् ।
अन्त:सभायां न ददर्श तत्पदं
वितत्रसुर्येन सुरारियूथपा: ॥ १६ ॥
अनुवाद
अपने पुत्र का वध करने की इच्छा रखने वाले हिरण्यकशिपु ने, जो अपने असाधारण पराक्रम का प्रदर्शन कर रहा था, एक अजीब सी भयावह ध्वनि सुनी जिसे उसने पहले कभी नहीं सुना था। इस ध्वनि को सुनकर अन्य दानव नेता भी भयभीत हो गए। उस सभा में कोई भी उस ध्वनि के स्रोत का पता नहीं लगा सका।