एवं दुरुक्तैर्मुहुरर्दयन् रुषा
सुतं महाभागवतं महासुर: ।
खड्गं प्रगृह्योत्पतितो वरासनात्
स्तम्भं तताडातिबल: स्वमुष्टिना ॥ १४ ॥
अनुवाद
अत्यन्त क्रोध के कारण अत्यन्त बलशाली हिरण्यकशिपु ने अपने महाभागवत पुत्र को अत्यन्त कटु वचन कहे और उसे फटकारा। बार-बार उसे श्राप देते हुए हिरण्यकशिपु अपनी तलवार लेकर अपने राजसी सिंहासन से उठ खड़ा हुआ और बहुत क्रोध के साथ खंभे पर मुक्का मारा।