श्रीहिरण्यकशिपुरुवाच
व्यक्तं त्वं मर्तुकामोऽसि योऽतिमात्रं विकत्थसे ।
मुमूर्षूणां हि मन्दात्मन् ननु स्युर्विक्लवा गिर: ॥ ११ ॥
अनुवाद
हिरण्यकशिपु ने उत्तर दिया: हे दुष्ट और ओछे प्राणी! तू मेरे महत्त्व को कम आंकने की चेष्टा कर रहा है। और तू ऐसा कर रहा है मानो तू इन्द्रिय-संयम में मुझसे बेहतर हो। यह तेरी अति-बुद्धिमत्ता है और इससे मैं समझता हूँ कि तू मेरे हाथों मरना चाहता है। क्योंकि मरने वाले लोग ही ऐसी बेसिर-पैर की (ऊटपटाँग) बातें करते हैं।