श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 8: भगवान् नृसिंह द्वारा असुरराज का वध  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  7.8.11 
 
 
श्रीहिरण्यकशिपुरुवाच
व्यक्तं त्वं मर्तुकामोऽसि योऽतिमात्रं विकत्थसे ।
मुमूर्षूणां हि मन्दात्मन् ननु स्युर्विक्लवा गिर: ॥ ११ ॥
 
अनुवाद
 
  हिरण्यकशिपु ने उत्तर दिया: हे दुष्ट और ओछे प्राणी! तू मेरे महत्त्व को कम आंकने की चेष्टा कर रहा है। और तू ऐसा कर रहा है मानो तू इन्द्रिय-संयम में मुझसे बेहतर हो। यह तेरी अति-बुद्धिमत्ता है और इससे मैं समझता हूँ कि तू मेरे हाथों मरना चाहता है। क्योंकि मरने वाले लोग ही ऐसी बेसिर-पैर की (ऊटपटाँग) बातें करते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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