श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 7: प्रह्लाद ने गर्भ में क्या सीखा  »  श्लोक 45
 
 
श्लोक  7.7.45 
 
 
किमेतैरात्मनस्तुच्छै: सह देहेन नश्वरै: ।
अनर्थैरर्थसङ्काशैर्नित्यानन्दरसोदधे: ॥ ४५ ॥
 
अनुवाद
 
  ये सभी साज-सामान शरीर के अस्तित्व तक ही प्रिय लगते हैं, पर जैसे ही शरीर नष्ट हो जाता है, शरीर से जुड़ी ये सभी चीजें भी समाप्त हो जाती हैं। इसलिए, वास्तव में किसी को इनसे कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन अज्ञानतावश ही लोग इन्हें मूल्यवान मान बैठते हैं। शाश्वत सुख के महासागर की तुलना में ये सभी चीजें बेहद नगण्य हैं। शाश्वत जीव के लिए ऐसे नगण्य रिश्तों से क्या फायदा?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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