श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 7: प्रह्लाद ने गर्भ में क्या सीखा  »  श्लोक 42
 
 
श्लोक  7.7.42 
 
 
सुखाय दु:खमोक्षाय सङ्कल्प इह कर्मिण: ।
सदाप्नोतीहया दु:खमनीहाया: सुखावृत: ॥ ४२ ॥
 
अनुवाद
 
  इस भौतिक जगत में प्रत्येक भौतिकतावादी सुख और आनंद की चाह रखता है और अपने दुख को कम करना चाहता है। इसलिए, वह तदनुसार कर्म करता है। लेकिन वास्तव में, कोई तभी तक खुश रहता है जब तक वह सुख के लिए प्रयास नहीं करता है। जैसे ही वह सुख के लिए काम करना शुरू कर देता है, तभी से उसकी दुख की अवस्था शुरू हो जाती है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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