को गृहेषु पुमान्सक्तमात्मानमजितेन्द्रिय: ।
स्नेहपाशैर्दृढैर्बद्धमुत्सहेत विमोचितुम् ॥ ९ ॥
अनुवाद
गृहस्थ जीवन से अत्यधिक आसक्त होकर ऐसा कौन मनुष्य स्वयं को मुक्त कर पाएगा जो अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण करने में असमर्थ है? आसक्त गृहस्थ अपनों (पत्नी, बच्चों और अन्य संबंधियों) के स्नेह के बंधनों से अत्यंत मजबूती से बंधा रहता है।