श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 6: प्रह्लाद द्वारा अपने असुर सहपाठियों को उपदेश  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  7.6.8 
 
 
दुरापूरेण कामेन मोहेन च बलीयसा ।
शेषं गृहेषु सक्तस्य प्रमत्तस्यापयाति हि ॥ ८ ॥
 
अनुवाद
 
  जिसका मन और इन्द्रियाँ काबू में नहीं हैं, वह अतृप्त कामेच्छाओं और प्रबल मोह के कारण पारिवारिक जीवन में बहुत अधिक आसक्त होता जाता है। ऐसे पागल व्यक्ति के जीवन के शेष वर्ष भी बर्बाद हो जाते हैं, क्योंकि उन वर्षों में भी वह अपने को भक्ति में लगा नहीं पाता।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.