तत्प्रयासो न कर्तव्यो यत आयुर्व्यय: परम् ।
न तथा विन्दते क्षेमं मुकुन्दचरणाम्बुजम् ॥ ४ ॥
अनुवाद
केवल इंद्रियों की तृप्ति या भौतिक सुख के लिए आर्थिक विकास के द्वारा प्रयत्न नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से समय और ऊर्जा की हानि होती है और वास्तविक लाभ नहीं मिल पाता। यदि कोई व्यक्ति अपने प्रयत्नों को कृष्ण चेतना की ओर लगाए, तो वह निश्चित रूप से आत्म-साक्षात्कार के आध्यात्मिक पद को प्राप्त कर सकता है। आर्थिक विकास में अपने आप को संलग्न करने से ऐसा कोई लाभ नहीं मिलता है।