परमेश्वर, समस्त जीवों के हितैषी एवं मित्र भगवान् नारायण ने यह दिव्य ज्ञान पहले महान संत नारद को प्रदान किया था। नारद जैसे संत के अनुग्रह के बिना इस ज्ञान को समझना अत्यंत कठिन है, परंतु जिस किसी ने भी नारद की शिष्य परंपरा की शरण ली है, वह यह गुह्य ज्ञान समझ सकता है।