श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 6: प्रह्लाद द्वारा अपने असुर सहपाठियों को उपदेश  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  7.6.26 
 
 
धर्मार्थकाम इति योऽभिहितस्त्रिवर्ग
ईक्षा त्रयी नयदमौ विविधा च वार्ता ।
मन्ये तदेतदखिलं निगमस्य सत्यं
स्वात्मार्पणं स्वसुहृद: परमस्य पुंस: ॥ २६ ॥
 
अनुवाद
 
  धर्म, अर्थ और काम - इन तीनों को वेदों में त्रिवर्ग या मुक्ति के तीन साधन कहा गया है। इन तीन वर्गों में शिक्षा और आत्म-साक्षात्कार, वैदिक आदेशानुसार किए गए कर्मकांड, कानून और व्यवस्था का विज्ञान और आजीविका कमाने के विभिन्न साधन शामिल हैं। ये वेदों के अध्ययन के बाहरी विषय हैं इसलिए मैं उन्हें भौतिक मानता हूं। लेकिन मैं भगवान विष्णु के चरण कमलों में समर्पण को दिव्य मानता हूं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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