यथा हि पुरुषस्येह विष्णो: पादोपसर्पणम् ।
यदेष सर्वभूतानां प्रिय आत्मेश्वर: सुहृत् ॥ २ ॥
अनुवाद
मानव जीवन भगवान के निवास, दिव्य धाम में लौटने का अवसर प्रदान करता है। इसलिए हर जीव, खासतौर पर जिसे मानव जीवन मिला है, को भगवान विष्णु के चरणों में भक्ति में लीन होना चाहिए। यह भक्ति स्वाभाविक है क्योंकि भगवान विष्णु, जो देवताओं के परम पुरुष हैं, सबसे अधिक प्रिय, आत्मा के स्वामी और सभी जीवों के शुभचिंतक हैं।