श्रीप्रह्राद उवाच
कौमार आचरेत्प्राज्ञो धर्मान्भागवतानिह ।
दुर्लभं मानुषं जन्म तदप्यध्रुवमर्थदम् ॥ १ ॥
अनुवाद
प्रह्लाद महाराज ने कहा : बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिए कि वह जीवन की शुरुआत से ही, अर्थात् बचपन से ही, अन्य सभी कार्यों को छोड़कर भक्ति कार्यों का अभ्यास करे। यह मानव शरीर बहुत ही दुर्लभ है और यह अन्य शरीरों की तरह नश्वर होते हुए भी सार्थक है, क्योंकि मानव जीवन में ही भक्ति की जा सकती है। यदि पूरी श्रद्धा के साथ थोड़ी सी भी भक्ति की जाए तो पूर्ण सिद्धि प्राप्त की जा सकती है।