श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 5: हिरण्यकशिपु का साधु पुत्र प्रह्लाद महाराज  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  7.5.6 
 
 
श्रीनारद उवाच
श्रुत्वा पुत्रगिरो दैत्य: परपक्षसमाहिता: ।
जहास बुद्धिर्बालानां भिद्यते परबुद्धिभि: ॥ ६ ॥
 
अनुवाद
 
  नारद मुनि ने आगे कहा: जब प्रह्लाद महाराज ने भक्ति भाव से परिपूर्ण आत्मसाक्षात्कार के मार्ग का वर्णन किया और इस तरह अपने पिता के शत्रुओं के प्रति अपनी स्वामि-भक्ति दिखाई, तो असुरों के राजा हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद की बातें सुनकर हंसते हुए कहा- "शत्रु की वाणी के द्वारा ही बच्चों की बुद्धि इसी तरह बिगड़ जाती है।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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