श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 5: हिरण्यकशिपु का साधु पुत्र प्रह्लाद महाराज  »  श्लोक 52
 
 
श्लोक  7.5.52 
 
 
धर्ममर्थं च कामं च नितरां चानुपूर्वश: ।
प्रह्रादायोचतू राजन्प्रश्रितावनताय च ॥ ५२ ॥
 
अनुवाद
 
  तत्पश्चात, षण्ड और अमर्क ने अत्यन्त विनम्र तथा नम्र प्रह्लाद महाराज को धर्म, धन और काम के विषयों में क्रमशः और निरंतर पढ़ाना शुरू किया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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