इमं तु पाशैर्वरुणस्य बद्ध्वा
निधेहि भीतो न पलायते यथा ।
बुद्धिश्च पुंसो वयसार्यसेवया
यावद्गुरुर्भार्गव आगमिष्यति ॥ ५० ॥
अनुवाद
हमारे गुरु शुक्राचार्य के लौटने तक इस बालक को वरुण की रस्सियों से बांध दो ताकि वह डर कर न भागे। किसी भी स्थिति में, जब तक वह थोड़ा बड़ा हो जाएगा और हमारे उपदेशों को आत्मसात कर लेगा या हमारे गुरु की सेवा कर लेगा, तब तक उसकी बुद्धि बदल जाएगी। इस तरह, चिंता की कोई बात नहीं है।