श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 5: हिरण्यकशिपु का साधु पुत्र प्रह्लाद महाराज  »  श्लोक 50
 
 
श्लोक  7.5.50 
 
 
इमं तु पाशैर्वरुणस्य बद्ध्वा
निधेहि भीतो न पलायते यथा ।
बुद्धिश्च पुंसो वयसार्यसेवया
यावद्गुरुर्भार्गव आगमिष्यति ॥ ५० ॥
 
अनुवाद
 
  हमारे गुरु शुक्राचार्य के लौटने तक इस बालक को वरुण की रस्सियों से बांध दो ताकि वह डर कर न भागे। किसी भी स्थिति में, जब तक वह थोड़ा बड़ा हो जाएगा और हमारे उपदेशों को आत्मसात कर लेगा या हमारे गुरु की सेवा कर लेगा, तब तक उसकी बुद्धि बदल जाएगी। इस तरह, चिंता की कोई बात नहीं है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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