श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 5: हिरण्यकशिपु का साधु पुत्र प्रह्लाद महाराज  »  श्लोक 48
 
 
श्लोक  7.5.48 
 
 
इति तच्चिन्तया किञ्चिन्‍म्‍लानश्रियमधोमुखम् ।
षण्डामर्कावौशनसौ विविक्त इति होचतु: ॥ ४८ ॥
 
अनुवाद
 
  इस प्रकार से विचार करते हुए, उदास और बदहवास दैत्यों के राजा मुँह नीचे किये हुए मौन बैठे रहे। उसी समय शुक्राचार्य के दोनों पुत्र षण्ड और अमर्क एकांत में उनसे बोले।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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