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अध्याय 5: हिरण्यकशिपु का साधु पुत्र प्रह्लाद महाराज
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श्लोक 46
श्लोक
7.5.46
वर्तमानोऽविदूरे वै बालोऽप्यजडधीरयम् ।
न विस्मरति मेऽनार्यं शुन: शेप इव प्रभु: ॥ ४६ ॥
अनुवाद
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यद्यपि यह मेरे निकट है और निरा बालक है, फिर भी पूर्ण निर्भय है। यह कुत्ते की उस टेढ़ी पूँछ के सदृश है जो कभी भी सीधी नहीं हो सकती, क्योंकि अपने स्वामी भगवान विष्णु से अपने संबंध एवं मेरे दुर्व्यवहार को यह कभी नहीं भूलता।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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