श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 5: हिरण्यकशिपु का साधु पुत्र प्रह्लाद महाराज  »  श्लोक 45
 
 
श्लोक  7.5.45 
 
 
एष मे बह्वसाधूक्तो वधोपायाश्च निर्मिता: ।
तैस्तैर्द्रोहैरसद्धर्मैर्मुक्त: स्वेनैव तेजसा ॥ ४५ ॥
 
अनुवाद
 
  हिरण्यकशिपु ने सोचा: मैंने प्रह्लाद को दंडित करने के लिए उसे कई अपशब्द बोले हैं, गालियाँ दी हैं और उसे मारने के कई उपाय किए हैं, लेकिन मेरे सभी प्रयासों के बावजूद वह नहीं मरा। निस्संदेह, वह इन विश्वासघातों और घृणित कर्मों से ज़रा भी प्रभावित नहीं हुआ और अपनी ही शक्ति से उसने अपनी रक्षा की।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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