श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 5: हिरण्यकशिपु का साधु पुत्र प्रह्लाद महाराज  »  श्लोक 43-44
 
 
श्लोक  7.5.43-44 
 
 
दिग्गजैर्दन्दशूकेन्द्रैरभिचारावपातनै: ।
मायाभि: सन्निरोधैश्च गरदानैरभोजनै: ।
हिमवाय्वग्निसलिलै: पर्वताक्रमणैरपि ॥ ४३ ॥
न शशाक यदा हन्तुमपापमसुर: सुतम् ।
चिन्तां दीर्घतमां प्राप्तस्तत्कर्तुं नाभ्यपद्यत ॥ ४४ ॥
 
अनुवाद
 
  जब हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र को बड़े हाथियों के पाँवों के नीचे फेंक कर, विशाल विषैले साँपों के बीच में डालकर, विनाशकारी जादू का प्रयोग करके, पर्वत के ऊपर से नीचे धकेलकर, भ्रामक चालें दिखाकर, जहर देकर, भूखा रखकर, ठंड, हवा, आग और पानी के बीच में डालकर या उस पर भारी पत्थर फेंककर भी नहीं मार पाया, तो वह बहुत चिंतित हो गया कि आगे क्या किया जाए।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.