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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान
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अध्याय 5: हिरण्यकशिपु का साधु पुत्र प्रह्लाद महाराज
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श्लोक 42
श्लोक
7.5.42
प्रयासेऽपहते तस्मिन्दैत्येन्द्र: परिशङ्कित: ।
चकार तद्वधोपायान्निर्बन्धेन युधिष्ठिर ॥ ४२ ॥
अनुवाद
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हे राजन युधिष्ठिर, जब प्रह्लाद महाराज को मार डालने की असुरों की सारी कोशिशें व्यर्थ हो गईं तो दैत्यों के राजा हिरण्यकशिपु बहुत घबरा गए और उसे मारने के और तरीके ढूँढ़ने लगे।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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