श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 5: हिरण्यकशिपु का साधु पुत्र प्रह्लाद महाराज  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  7.5.4 
 
 
एकदासुरराट् पुत्रमङ्कमारोप्य पाण्डव ।
पप्रच्छ कथ्यतां वत्स मन्यते साधु यद्भ‍वान् ॥ ४ ॥
 
अनुवाद
 
  हे राजा युधिष्ठिर, एक बार असुरराज हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र प्रह्लाद को अपनी गोद में लिया और बड़े ही प्यार से पूछा: हे पुत्र, मुझे यह बताओ कि तुमने अपने शिक्षकों से जितने विषय पढ़े हैं उनमें से श्रेष्ठ कौन सा है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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