श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 5: हिरण्यकशिपु का साधु पुत्र प्रह्लाद महाराज  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  7.5.37 
 
 
परोऽप्यपत्यं हितकृद्यथौषधं
स्वदेहजोऽप्यामयवत्सुतोऽहित: ।
छिन्द्यात्तदङ्गं यदुतात्मनोऽहितं
शेषं सुखं जीवति यद्विवर्जनात् ॥ ३७ ॥
 
अनुवाद
 
  यद्यपि जड़ी बूटी औषधीय होती है लेकिन जंगल में उत्पन्न होने के कारण वह मनुष्य की श्रेणी में नहीं आती, परंतु लाभप्रद होने पर उसकी बहुत ध्यानपूर्वक रक्षा की जाती है। उसी प्रकार, यदि कोई व्यक्ति परिवार से बाहर का हो और अनुकूल हो, तो उसे पुत्र के समान सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए। दूसरी ओर, यदि किसी के शरीर का कोई अंग रोग से विषाक्त हो जाए, तो उसे काटकर अलग कर देना चाहिए ताकि बाकी शरीर सुखपूर्वक जीवित रहे। उसी प्रकार भले ही अपना पुत्र ही क्यों न हो, यदि वह प्रतिकूल है तो उसे त्याग देना चाहिए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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