श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 5: हिरण्यकशिपु का साधु पुत्र प्रह्लाद महाराज  »  श्लोक 34
 
 
श्लोक  7.5.34 
 
 
आहामर्षरुषाविष्ट: कषायीभूतलोचन: ।
वध्यतामाश्वयं वध्यो नि:सारयत नैर्ऋताः ॥ ३४ ॥
 
अनुवाद
 
  अत्यंत रोष में आकर पिघले हुए ताँबे के समान लाल आँखों से हिरण्यकशिपु ने आदेश दिया, हे राक्षसों, इस बालक को मेरी नजरों से दूर करो। यह मृत्यु का भागी है। इसे जितनी जल्दी हो सके, मार डालो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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