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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान
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अध्याय 5: हिरण्यकशिपु का साधु पुत्र प्रह्लाद महाराज
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श्लोक 33
श्लोक
7.5.33
इत्युक्त्वोपरतं पुत्रं हिरण्यकशिपू रुषा ।
अन्धीकृतात्मा स्वोत्सङ्गान्निरस्यत महीतले ॥ ३३ ॥
अनुवाद
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जब प्रह्लाद महाराज ने इस तरह से बात समाप्त की और शांत हुए तो क्रोध से अंधे हिरण्यकशिपु ने उन्हें अपनी गोद से उठाकर नीचे फेंक दिया।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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