श्रीप्रह्राद उवाच
मतिर्न कृष्णे परत: स्वतो वा
मिथोऽभिपद्येत गृहव्रतानाम् ।
अदान्तगोभिर्विशतां तमिस्रं
पुन: पुनश्चर्वितचर्वणानाम् ॥ ३० ॥
अनुवाद
प्रह्लाद महाराज ने उत्तर दिया: जो प्राणी अपनी असंयमित इन्द्रियों के कारण अति भौतिकतावादी जीवन शैली अपनाते हैं, वे नरकगामी होते हैं तथा बार-बार उसी को चबाते हैं जो पहले ही चबाया जा चुका होता है। ऐसे लोगों का श्री कृष्ण के प्रति झुकाव न तो दूसरों के उपदेशों से, न अपने निजी प्रयासों से और न दोनों को मिलाकर कभी भी नहीं होता।