श्रीनारद उवाच
गुरुणैवं प्रतिप्रोक्तो भूय आहासुर: सुतम् ।
न चेद्गुरुमुखीयं ते कुतोऽभद्रासती मति: ॥ २९ ॥
अनुवाद
श्री नारद मुनि ने आगे कहा: जब हिरण्यकशिपु को गुरु से यह उत्तर मिल गया, तो उसने फिर से अपने पुत्र को संबोधित किया। हिरण्यकशिपु ने कहा, "अरे बदमाश! हमारे कुल के सबसे निकृष्ट! यदि तूने यह शिक्षा अपने गुरुओं से नहीं पाई, तो फिर ये बता कि इसे तूने कहाँ से प्राप्त किया?"