श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 5: हिरण्यकशिपु का साधु पुत्र प्रह्लाद महाराज  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  7.5.28 
 
 
श्रीगुरुपुत्र उवाच
न मत्प्रणीतं न परप्रणीतं
सुतो वदत्येष तवेन्द्रशत्रो ।
नैसर्गिकीयं मतिरस्य राजन्
नियच्छ मन्युं कददा: स्म मा न: ॥ २८ ॥
 
अनुवाद
 
  हिरण्यकशिपु के सद्गुरु शुक्राचार्य के पुत्र ने कहा : हे इंद्र के शत्रु, हे राजन! आपके पुत्र प्रह्लाद ने जो कुछ कहा है, वह न तो मैंने उन्हें सिखाया है, न ही किसी और ने। उनकी यह भक्ति स्वत: ही विकसित हुई है। इसलिए, कृपया अपना क्रोध छोड़ दें और बिना वजह के हमें दोषी न ठहराएँ। इस तरह से किसी ब्राह्मण का अपमान करना अच्छा नहीं है।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.