श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 5: हिरण्यकशिपु का साधु पुत्र प्रह्लाद महाराज  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  7.5.25 
 
 
निशम्यैतत्सुतवचो हिरण्यकशिपुस्तदा ।
गुरुपुत्रमुवाचेदं रुषा प्रस्फुरिताधर: ॥ २५ ॥
 
अनुवाद
 
  अपने पुत्र प्रह्लाद के मुंह से भक्ति के ये वचन सुनकर हिरण्यकशिपु क्रोध से भड़क उठा। उसने काँपते होठों से अपने गुरु शुक्राचार्य के पुत्र षण्ड से इस प्रकार कहा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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