श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 5: हिरण्यकशिपु का साधु पुत्र प्रह्लाद महाराज  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  7.5.22 
 
 
हिरण्यकशिपुरुवाच
प्रह्रादानूच्यतां तात स्वधीतं किञ्चिदुत्तमम् ।
कालेनैतावतायुष्मन् यदशिक्षद्गुरोर्भवान् ॥ २२ ॥
 
अनुवाद
 
  हिरण्यकशिपु ने कहा: प्रह्लाद, मेरे बेटे, मेरे चिरंजीव, इतने समय में तुमने अपने गुरुओं से बहुत कुछ सीखा है। अब तुम जो भी सबसे अच्छी बात समझाते हो, वह मुझे बताओ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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