आरोप्याङ्कमवघ्राय मूर्धन्यश्रुकलाम्बुभि: ।
आसिञ्चन् विकसद्वक्त्रमिदमाह युधिष्ठिर ॥ २१ ॥
अनुवाद
नारद मुनि ने आगे कहा: हे राजा युधिष्ठिर, हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद महाराज को गोद में बैठाया और प्यार से उसके सिर को सूँघने लगे। उनकी आँखों से प्रेम के आँसू बहने लगे, जिससे बालक के चेहरे पर मुस्कान आ गई। हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र से निम्नलिखित बातें कहीं।