श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 5: हिरण्यकशिपु का साधु पुत्र प्रह्लाद महाराज  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  7.5.21 
 
 
आरोप्याङ्कमवघ्राय मूर्धन्यश्रुकलाम्बुभि: ।
आसिञ्चन् विकसद्वक्त्रमिदमाह युधिष्ठिर ॥ २१ ॥
 
अनुवाद
 
  नारद मुनि ने आगे कहा: हे राजा युधिष्ठिर, हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद महाराज को गोद में बैठाया और प्यार से उसके सिर को सूँघने लगे। उनकी आँखों से प्रेम के आँसू बहने लगे, जिससे बालक के चेहरे पर मुस्कान आ गई। हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र से निम्नलिखित बातें कहीं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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