श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 5: हिरण्यकशिपु का साधु पुत्र प्रह्लाद महाराज  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  7.5.20 
 
 
पादयो: पतितं बालं प्रतिनन्द्याशिषासुर: ।
परिष्वज्य चिरं दोर्भ्यां परमामाप निर्वृतिम् ॥ २० ॥
 
अनुवाद
 
  जब हिरण्यकश्यप ने देखा कि उसका पुत्र उसके चरणों में सिर झुकाकर प्रणाम कर रहा है, तो उन्होंने तुरंत ही एक दयालु पिता की तरह अपने पुत्र को आशीर्वाद दिया और उसे अपनी दोनों बाहों में भर लिया। एक पिता अपने पुत्र को गले लगाकर स्वाभाविक रूप से खुश होता है और इसी तरह हिरण्यकश्यप भी बहुत खुश हुए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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