जब हिरण्यकश्यप ने देखा कि उसका पुत्र उसके चरणों में सिर झुकाकर प्रणाम कर रहा है, तो उन्होंने तुरंत ही एक दयालु पिता की तरह अपने पुत्र को आशीर्वाद दिया और उसे अपनी दोनों बाहों में भर लिया। एक पिता अपने पुत्र को गले लगाकर स्वाभाविक रूप से खुश होता है और इसी तरह हिरण्यकश्यप भी बहुत खुश हुए।