श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 5: हिरण्यकशिपु का साधु पुत्र प्रह्लाद महाराज  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  7.5.17 
 
 
दैतेयचन्दनवने जातोऽयं कण्टकद्रुम: ।
यन्मूलोन्मूलपरशोर्विष्णोर्नालायितोऽर्भक: ॥ १७ ॥
 
अनुवाद
 
  यह शरारती प्रह्लाद चंदन के वन में कांटेदार पेड़ की तरह प्रकट हुआ है। चंदन के पेड़ काटने के लिए कुल्हाड़ी की आवश्यकता होती है और कांटेदार पेड़ की लकड़ी ऐसे कुल्हाड़ी के हत्थे बनाने के लिए बहुत उपयुक्त होती है। भगवान विष्णु दैत्य वंश के चंदन के जंगल को काटने के लिए कुल्हाड़ी के समान हैं और यह प्रह्लाद उस कुल्हाड़ी का हत्था है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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