श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 5: हिरण्यकशिपु का साधु पुत्र प्रह्लाद महाराज  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  7.5.15 
 
 
श्रीनारद उवाच
एतावद्ब्राह्मणायोक्त्वा विरराम महामति: ।
तं सन्निभर्त्स्य कुपित: सुदीनो राजसेवक: ॥ १५ ॥
 
अनुवाद
 
  महर्षि नारद आगे कहते हैं: शुक्राचार्य के पुत्र अर्थात् उनके अध्यापक षण्ड और अमर्क से यह कहकर महान आत्मा प्रह्लाद महाराज चुप हो गए। तब ये तथाकथित ब्राह्मण उन पर क्रोधित हो गये। क्योंकि वे हिरण्यकश्यप के दास थे इसलिए वे बहुत दुखी थे। वे प्रह्लाद महाराज की निन्दा करने के लिए इस प्रकार बोले।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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