प्रह्लाद महाराज ने उत्तर दिया: मैं उन भगवान् को सादर नमस्कार करता हूँ जिनकी माया ने मनुष्यों की बुद्धि को चकमा देकर ‘मेरे मित्र’ तथा ‘मेरे शत्रु’ में अन्तर उत्पन्न किया है। निस्सन्देह, मुझको अब इसका वास्तविक अनुभव हो रहा है, यद्यपि मैंने पहले इसके विषय में प्रामाणिक स्रोतों से सुन रखा है।