श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 5: हिरण्यकशिपु का साधु पुत्र प्रह्लाद महाराज  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  7.5.10 
 
 
बुद्धिभेद: परकृत उताहो ते स्वतोऽभवत् ।
भण्यतां श्रोतुकामानां गुरूणां कुलनन्दन ॥ १० ॥
 
अनुवाद
 
  हे कुलश्रेष्ठ, क्या ये आपकी बुद्धि का यह विकार स्वयं आया है या फिर किसी शत्रु द्वारा लाया गया है? हम सभी आपके शिक्षक हैं और इस विषय में जानने के इच्छुक हैं। हमसे सच-सच कहें।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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