श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 4: ब्रह्माण्ड में हिरण्यकशिपु का आतंक  »  श्लोक 45
 
 
श्लोक  7.4.45 
 
 
पुत्रान् विप्रतिकूलान् स्वान् पितर: पुत्रवत्सला: ।
उपालभन्ते शिक्षार्थं नैवाघमपरो यथा ॥ ४५ ॥
 
अनुवाद
 
  माता-पिता सदा ही अपने बच्चों से प्यार करते हैं। जब बच्चे उनकी बात नहीं मानते या आज्ञाओं का पालन नहीं करते, तो माता-पिता उन्हें दंडित करते हैं। यह दंड किसी शत्रुतावश नहीं, बल्कि बच्चे को शिक्षा देने और उसके भले के लिए होता है। तो हिरण्यकशिपु ने अपने इतने अच्छे बेटे प्रह्लाद महाराज को क्यों सजा दी? मैं यह जानने के लिए बहुत उत्सुक हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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