श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 4: ब्रह्माण्ड में हिरण्यकशिपु का आतंक  »  श्लोक 41
 
 
श्लोक  7.4.41 
 
 
क्‍वचिदुत्पुलकस्तूष्णीमास्ते संस्पर्शनिर्वृत: ।
अस्पन्दप्रणयानन्दसलिलामीलितेक्षण: ॥ ४१ ॥
 
अनुवाद
 
  कभी-कभी, भगवान के चरण-कमलों का स्पर्श महसूस करते हुए, वे आध्यात्मिक रूप से प्रफुल्लित हो जाते और चुप रहते, उनके रोम खड़े हो जाते और भगवान के प्रति उनके प्रेम के कारण उनकी अर्ध-मुँदी आँखों से आँसू बहने लगते।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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