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अध्याय 4: ब्रह्माण्ड में हिरण्यकशिपु का आतंक
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श्लोक 39
श्लोक
7.4.39
क्वचिद्रुदति वैकुण्ठचिन्ताशबलचेतन: ।
क्वचिद्धसति तच्चिन्ताह्लाद उद्गायति क्वचित् ॥ ३९ ॥
अनुवाद
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कृष्णभावनामृत में प्रगति होने से वह कभी रोता, कभी हँसता, कभी प्रसन्न होता और कभी ऊँची स्वर में गाता था।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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