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अध्याय 4: ब्रह्माण्ड में हिरण्यकशिपु का आतंक
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श्लोक 38
श्लोक
7.4.38
आसीन: पर्यटन्नश्नन् शयान: प्रपिबन् ब्रुवन् ।
नानुसन्धत्त एतानि गोविन्दपरिरम्भित: ॥ ३८ ॥
अनुवाद
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प्रह्लाद महाराज हमेशा कृष्ण के विचारों में लीन रहते थे। इस प्रकार, भगवान द्वारा हमेशा आलिंगित होने के कारण, उन्हें पता ही नहीं चल पाता था कि उनकी शारीरिक ज़रूरतें, जैसे बैठना, चलना, खाना, लेटना, पीना और बात करना, अपने आप कैसे पूरी हो रही थीं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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